Sunday, July 22, 2007

आमेर : किले से खंडहर के ओर

आमेर का दुर्ग..



करीबन 10-12 साल पहले देखा था तो देखता ही रह गया। इतना विशाल और मजबूत, जैसे अपने महान इतिहास की हर गाथा बयान कर रह हो।
कईं सौ साल पुरना यह दुर्ग जयपुर को आगे बढ़ते हुए देख रहा है..


पर खुद पीछे जाता जा रहा है
आमेर आज भी वहीं खड़ा है.. लेकिन उसका रूप बदल चुका है.. वो जर्जर हो चुका है..ऐसा लगता है मानो आखिरी साँसें ले रहा हो.. 10 साल् बाद अगर मैं फ़िर देखने जाऊँ तो हो सकता है उसे न पाऊँ!!
ज़रा नीचे एक तस्वीर पर नज़र डालें..



इस दीवार पर कुछ शीशे अब नहीं हैं.. अंदर कमरे की दीवार का और भी बुरा हाल है..
जनता की मेहरबानी है
अब उन तस्वीरों को देखते हैं जिन्हें देखकर उन कारीगरों के बारे में सोचा करता हूँ कि आज तो हम नई तकनीक से ऊँचे कंक्रीट की इमारतें खड़ी करते हैं..वो लोग तब किस प्रकार से पहाड़ के ऊपर महल बनाया करते थे..





और अब यह है खूबसूरत कारीगरी का नमूना... क्या बढ़िया चित्रकारी है..


नज़र नहीं आ रही?? हम ही लोगों ने उखाड़ फ़ेंकी है.. शायद कुछ लोगों को बहुत पसंद आ गई
शुक्र है भारतीयों का कद आमतौर पर बड़ा नहीं होता..


वरना छत की इस नक्काशी के कुछ शीशे हम में से किसी एक के घर की शोभा बढ़ा रहे होते!!

आगे के चित्र आपको विचलित भी कर सकते हैं और शायद सोचने पर मजबूर भी कि 21वें सदी में 10 प्रतिशत की विकास दर के सथ भारत तरक्की कर रहा है(?) या फ़िर केवल "पैसा पैसा" छोड़ कर और भी कुछ सोचने की ज़रूरत है!!



हम में से ही किसी एक ने थूका है इतिहास पर!!


टूट रहीं हैं दीवारें..


खत्म हो रहा है इतिहास



मरम्मत का काम जारी है..


गाइड ने बताया कि 40 करोड़ मिले हैं किले को ठीक करने के लिये...
पर सरकारी के काम को आप और हम अच्छी तरह से समझते हैं..
पर हर बार सरकार को दोष मढ़ना किस हद तक सही है.. इस बार दोषी हम और आप हैं..
हम लोग ही शीशे निकालते हैं.. हम ही थूकते हैं.. हम ही प्रेम संदेश लिखते हैं दीवारों पर..
अब सवाल उठता है कि हम क्या करसकते हैं.. हर उस शख्स को जिसे आप इतिहास को गंदा करते हुए पायें.. तुरं त रोकें..
हमसे ही इतिहास बना है.. हम ही बिगाड़ रहे हैं.. इन धरोहरों को देखने के लिये देश विदेश से पर्यटक आते हैं..भारत का नाम और शोभा इन्ही किलों में है.. इसके अस्तित्व को बचाये रखने में मदद करें.. यही विनती है
वर्ना अगली पीढ़ी हमें दोष देगी कि इतिहास को हमने वर्तमान में तबाह करके भविष्य की पीढ़ी को सिवाये पत्थरों और मिट्टी के ढेरों के कुछ न दिया!!

2 comments:

Unknown said...

तुने राजस्थान घुमने की ईच्छा और बढा दी

Pooja Utreja said...

You are not asking too much from Indian citizens Tapan. I am proud to know a soul who can think so far and I am sure the day is not far when you'll also take every possible step to save our history. (This includes 'HINDI' language also).