Sunday, July 29, 2007

खेल

पुल पर तेज़ी से चलती ट्रेन से बाहर मैने झाँका है
एक कब्रिस्तान नज़र मुझको आया है..

उसी के पास एक ज़मीन..और उस पर कुछ बच्चे..
क्रिकेट खेलते..खेल को देखते..हँसी मजाक करते..

किल्लियाँ बिखर जाती हैं एक गेंद से..
बल्लेबाज बल्ले को पटकता है ज़ोर से..

मैं देखता हूँ एक खिलाड़ी को पैविलियन वापस जाते हुए..
और दूसरे को अपनी बारी शुरु होने पर खुश नज़र आते हुए..

कुछ ही पलों में आँखों से दृश्य ओझल हो रहा है...
धीरे धीरे ही सही...अब ये मुझे समझ में आ रहा है

इस खेल के मैदान में खेलती दुनिया सारी है
अम्पायर के निर्देशों पर..ये खेल निरन्तर जारी है..

ये खेल निरन्तर जारी है.. ये खेल निरन्तर जारी है..

1 comment:

Keshav K Gupta said...
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