Sunday, November 4, 2007

कंजकें

ज्यादा भूमिका नहीं बाँधूँगा। लड़कियों का कम होना चिंता का विषय है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि अनपढ़ तो अनपढ़ हैं ही, सभ्य समाज या शहर में बसने वाले और आधुनिक कहे जाने वाले समाज में भी बेटियों को कुछ नहीं समझा जाता।
उन्हें या तो पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है, या बेटों से कम तवज्जो दी जाती है। आधुनिक भारत के सभ्य व आधुनिक समाज के मुँह पर ये जोरदार तमाचा है। तमाचा जोर का लगे उसके लिये आपकी टिप्पणी आवश्यक है।

अरे पिंकू बेटे,
ज़रा बाहर जा,
गुप्ता आँटी की
निक्की को बुला ला।

पिंकू दौड़ा दौड़ा गया,
वापिस आया, माँ से बोला,
निक्की मेहता अंकल के गई है,
१५ मिनट में आने का है बोला।

नवरात्रि के इस त्योहार में
हर घर में कंजकें जीमी जायेंगी,
पर लगता है कि इस बार भी
निक्की ही सब के घर जायेगी।

जब पालने में बेटी होती है,
तो उसका गला दबाया जाता है।
पर "देवी" से आशीर्वाद मिल जाये,
इसलिये नवरात्रि में पूजा जाता है।।

ये सभ्य लोगों का समाज है,
जो बेटी नहीं पाल सकता,
न जाने किस बात का डर है
जो बेटियों को हाशिये पर है रखता।

पंजाब जैसे समृद्ध प्रदेश में भी,
लगातार बेटियाँ हो रही है कम।
जब बेटे की शादी के लिये लड़की ढूँढेंगे,
शायद तब निकलेगा सबका दम।।

तब समझेगा ये समाज,
बेटियों की अहमियत को,
जब तरसेगा आदमी,
पत्नी,बहन, भाभी और माँ को।

भयावह सा लगता है जब,

सोचता हूँ जीवन,
इन रिश्तों के बिना,

हकी़क़त सा लगने लगा था ये दु:स्वप्न,

जो इस बार मैंने कंजकों को,
पिछली बार से आठ कम गिना!!!

7 comments:

Unknown said...

बहुत सही लिखा है इस सभ्य समाज के बारे में

Unknown said...

अगर आप इस कविता को सजीव देखना चाहते है तो इस फिल्म को अवश्य देखे:
Matrubhoomi
http://www.bollyvista.com/article/a/30/2180

Rahul said...

Really very true and touching......Manish Jha ki Matribhumi sach ho jayegi agar logo ko baat samajh nai ayegi....

Nisha said...

bahut sahi likha hai....aur kaafi had tak sacchhai yahi hai....sabhya logo ke muh se shabd aksar sune jaate hai beta hone ki khushi hi kuch aur hoti hai....woh ye bhool jaate hai ki unhe janm dene waali bhi ek aurat hi hai.....

Queen of Endurance said...

बहुत अच्छा लिखा है तपन
काश इस को पढ़ कर दुनिया की आंखें खुलें.

achhabra said...

Kya baat hai Tapan ...
Lage Raho...

चिराग जैन CHIRAG JAIN said...

उपमान और उपमेय के अंतर की अनुमोदना के लिए धन्यवाद!
कदाचित आप भी सृजन की इस वेदना को उतने ही निकट से अनुभूत करते हैं......

-चिराग जैन