पिछले सप्ताह से हॉकी फ़ेडरेशन और खिलाड़ियों के बीच तनातनी बढ़ती हुई दिखाई दी। ऐसा नहीं कि यह लड़ाई अभी शुरु हुई हो। ये एक पीड़ा है हॉकी की व हॉकी खिलाड़ियों की। यह ज्वालामुखी है जो समय समय पर फ़टता ही रहेगा जब जब हॉकी असहाय महसूस करेगी। जब जब हॉकी का दम घुटेगा उसमें से लावा निकलता रहेगा। कभी पूर्व खिलाड़ी धनराज पिल्लै ने कहा था- "हॉकी ने मुझे मान दिया, इज्जत और शौहरत दी पर दौलत न दी"। आखिर कब तक खिलाड़ी बिना पैसे के खेलते रहेंगे? आखिर कब तक खिलाड़ी सुविधाओं के अभाव में खेलते रहेंगे और फिर हम उनसे विश्वकप जीतने की उम्मीदें भी करें।
बचपन से हमें सिखाया गया है कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। पर इसके हालात देख कर कहीं से लगता नहीं कि यह राष्ट्रीय खेल है। भविष्य में बच्चे इसे मानने से ही इनकार करेंगे। हॉकी व फ़ुटबॉल जैसे खेलों की दयनीय हालत का जिम्मेदार क्रिकेट की लगातार बढ़ती लोकप्रियता को भी माना जाता रहा है। एक समय था जब भारतीय हॉकी का बोलबाला हुआ करता था और हमने एक के बाद एक लगातार सोने के तमगे हासिल किये पर क्रिकेट का आगमन जैसे इस खेल को ग्रहण लगा गया। १५ जनवरी को हुआ सूर्य ग्रहण तो ४ घंटे में टल गया पर हॉकी पर लगा ग्रहण कब हटेगा ये कोई नहीं जानता। परगट सिंह, पिल्लै और दिलीप टर्की जैसे खिलाड़ी आते-जाते रहेंगे पर ग्रहण का अंधकार हमेशा इस खेल पर कायम रहेगा।
क्रिकेट के खेल में खिलाड़ी टीम में न भी खेलें तो भी १५ लाख सालाना कमा सकते हैं। पर इससे ठीक उलट हॉकी में खिलाड़ी खेल भी लिये तो भी कुछ मिलेगा या नहीं उस पर संशय बना रहता है। हाल ही में विवाद को जब ’सहारा’ का सहारा मिला तो खेल प्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। केपीएस गिल की हरकतों के बाद जब भारतीय हॉकी संघ तो तोड़ा गया और हॉकी इंडिया की स्थापना हुई तब लगा कि हॉकी का काया पलट होगा। पर ऐसा हुआ नहीं। संघ का नाम तो बदला पर हालात जस के तस ही रहे। हॉकी को सुधारने के प्रयास होते कहीं दिखाई नहीं दे रहे।
यदि आप दस वर्ष के किसी बच्चे से क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों के नाम पूछेंगे तो वह ग्यारह की बजाय तीस बता सकता है। अब जरा हॉकी खिलाड़ियों के नाम पूछिये। तीन भी बता दे तो समझ लीजिये की हॉकी की उन्नति तय है। पर
ऐसा होता कहीं दिख तो नहीं रहा है। पूछ कर जरूर देखियेगा। यदि आप सच्चे खेल प्रेमी होंगे तो दुखी होगे। क्रिकेट की अधिकता दूसरे खेलों का ही नहीं पर भस्मासुर की तरह स्वयं का भी अंत करने की ओर अग्रसर है। ट्वेंटी-२० का खेल टेस्ट मैच के असली क्रिकेट को खत्म कर रहा है। साल भर में महज चार टेस्ट मैच खेलेगी भी भारतीय टीम। इससे ज्याद दुखद बात क्या होगी? क्रिकेट खिलाड़ी जहाँ करोड़ो का टैक्स भर रहे हैं जबकि दूसरे खेलों में लाख रूपये कमाने में भी पसीना निकल जाता है। कुश्ती, तीरंदाजी, टेनिस में पदकों के जीतने पर कुछ उम्मीद तो बंधती दिखती है पर सप्ताह भर चले इस झगड़े को देखते हुए फिर उम्मीदें ध्वस्त हो जाती हैं।
क्या करें कि यह मृत खेल फिर से जीवित हो सके? क्या हमारी व्यवस्था इसे ठीक कर सकती है? बीसीसीआई का नाम आप को पता होगा। ये बोर्ड भारत में क्रिकेट चलाता है। इस बोर्ड में बड़े से बड़े नेता बैठे हुए हैं जो अपना पैसा बनाने में लगे हुए हैं। शरद पवार आइसीसी के उपाध्यक्ष बने और अब डालमिया की तरह ही अध्यक्ष पद पाने की लालसा में हैं। मिल भी जायेगा। आइसीसी को पता है कि विश्व का सबसे कमाऊ क्रिकेट बोर्ड है बीसीसीआई। अब एक बात और आपको बता दूँ कि क्रिकेट ही नहीं बल्कि सभी खेलों में सबसे कमाऊ बोर्ड है हमारा बीसीसीआई। इस पर राज करने वाले यदि सच्चे क्रिकेट प्रेमी होते तो पैसे के लालच में क्रिकेट को ट्वेंटी-२० की आग में न झोंकते! हॉकी को जिंदा रखने का रास्ता इसी बोर्ड के पास है। यदि क्रिकेट बोर्ड हॉकी संघ को अपनी कमाई का १० फ़ीसदी हिस्सा भी दे दे तब भी हॉकी का कायकल्प किया जा सकता है। पर वे ऐसा करेंगे क्यों? उनका स्वार्थ पूरा नहीं होता है इसमें। आज हॉकी में सभी खिलाड़ी इसलिये हैं क्योंकि वे खेल को चाहते हैं, जबकि क्रिकेट में इसलिये क्योंकि वे पैसे और नाम को चाहते हैं। हॉकी संघ पर भी राजनेताओं की बजाय पूर्व खिलाड़ियों को काबिज होना पड़ेगा तभी बात बनेगी।
एक बात और सोचने वाली है कि हमारे स्कूल हॉकी को बढ़ावा क्यों नहीं देते? क्रिकेट सिखाने के लिये कोच नियुक्त किये जाते हैं, उनपर पैसा खर्च किया जाता है तो फिर हॉकी व फ़ुटबॉल क्यों नहीं सिखाया जा सकता। बचपन से ही यदि क्रिकेट के साथ साथ हॉकी भी सीखने को मिलेगी तो क्यों हॉकी आज की तरह तरसेगी? यदि बचपन से ही हमें हॉकी सिखाया जाये तो ध्यानचंद फिर पैदा हो सकते हैं और हम फिर से आने वाली पीढ़ी को गर्व से कह सकते हैं कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। यदि ऐसा न हुआ तो हॉकी की शवयात्रा यूँ ही जारी रहेगी।
1 comment:
दुखद तो सचमुच है यह स्थिति......पता नहीं भारीय लोग क्रिकेट के उन्माद को कम छोड़ पाएंगे? एक तो खेल में वैसे हे फिसड्डी है हम लोग, ऊपर से के बेवकूफाना खेल के पीछे ऐसा पागलपन की बाकि सभी खेलो की आहुति दे दी गई.....
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