रविवार को जब इन बच्चों को शाम का नाश्ता मिला तो जब तक सभी तो नाश्ता नहीं मिल गया तब तक किसी ने भी उसे खाना शुरू नहीं किया। इन बच्चों से मिलना ही हमें बहुत कुछ सिखा जाता है। छोटे छोटे मासूम बच्चों के मुँह से "धन्यवाद" या "थैंक्यू" सुना तो मन प्रसन्न हो गया।
उसके बाद हम लोग रानी बाग से सटे सैनिक विहार के आर्यसमाज मंदिर गये। यह कन्या कुटुम्ब है अथवा यहाँ पर भी पूर्वोत्तर की साठ से सत्तर कन्यायें अपनी वैदिक व सीबीएसई की शिक्षा ग्रहण करती हैं।
आर्य समाज मंदिर की तीन तस्वीरें आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।
वहाँ लिखे एक पोस्टर से पंक्तियाँ चुरा रहा हूँ:
धर्म: दूसरों को बिना दु:ख दिये सुख उत्पन्न किया जाने वाला कर्म ही धर्म है।
मानवता: आत्मा को प्रतिकूल लगने वाला व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये। जो व्यवहार आपको स्वयं अच्छा नहीं लगता वही आप
दूसरों के साथ कैसे कर सकते हैं?
दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप स्वयं के लिये चाहते हैं।
सत्य: जो पदार्थ व ज्ञान जैसा है उसे वैसा ही जानना, मानना और आचरण करना ही सत्य है।
वह दौर जिसमें सरकारें व मीडिया पूर्वोत्तर को घास भी नहीं डालतीं व उस क्षेत्र को भारत का नहीं समझतीं हैं उस दौर में यह मंदिर उत्तर-पूर्व के बच्चों के लिये वरदान के समान हैं।
।जय हिन्द।
।वन्देमातरम।
2 comments:
बेहतरीन प्रयास ..................
उम्दा कार्य.....
Post a Comment