Saturday, February 9, 2008

हँसी मनोरंजन में टूटता भारत

पिछले दिनों मैंने एक लेख लिखा था झूठे, मतलब परस्त - हम भारतीय!! जिसमें मैंने भारतीयों की क्षेत्रवाद व नस्लवाद के प्रति पाक-साफ़ दिखने वाली छवि पर कुछ प्रश्न किये थे। आज थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। कुछ ऐसी बातें जो हमारी एकता पर सवाल करती हैं, कुछे ऐसी बातें जिनसे हमारे भारत के शरीर पर पड़ती झुर्रियाँ, मकानों में दरारें व घर-परिवार में दीवार खिचती दिखाई देती है। जिसकी झलक आप खेल में, चुनावों में, यहाँ तक कि टीवी के कार्यक्रमों में भी देख सकते हैं। मैं यहाँ ये साफ़ के देना चाहता हूँ कि कारण और भी हैं परन्तु मैं फिलहाल एक को ही ध्यान में रख कर लिख रहा हूँ।
करीबन १२-१३ साल पहले २ कार्यक्रम शुरू हुए थे। एक था दूरदर्शन पर आने वाला "मेरी आवाज़ सुनो" व ज़ी पर अभी भी धूम मचाने वाला "सा रे ग म" जो आजकल "सारेगमप" के नाम से जाना जाता है। मंशा थी कि जनता में से बेहतरीन आवाज़ें आगे लाना ताकि हमारे देश में संगीत कोने कोने तक फैले और नई प्रतिभाओं को आगे आने का मौका मिल सके। सब बढ़िया तरीके से चल रहा था। कुछ ३-४ वर्ष पूर्व अचानक ही मनोरंजन जगत में इस कार्यक्रम को टक्कर देने के लिये सोनी ने इंडियन आइडल की शुरुआत की। उसी दौरान क्रांति आई और संगीत के ऐसे ही कुछ और कार्यक्रम शुरू हुए। लेकिन बदले हुए अंदाज़ में। इन प्रोग्रामों को "रियालिटी शो" का नाम दिया गया। चूँकि अब नलों से ज्यादा मोबाइल हो गये हैं तो क्यों न लोगों को मैसेज करना भी सिखाया जाये। ये बीडा उठाया समाचार चैनलों ने जो हर रोज़ किये जाने बेतुके सवालों पर पोल करते हैं और लोगों के मैसेज इंबोक्स में ज़ंग लगने से रोकते हैं। कम्पीटीशन इस कदर बढ़ गया कि अब इन शो में जजों के होने या न होने का कोई मतलब नहीं रह गया और लोगों से फोन की सहायता से वोट माँगे जा रहे हैं। हाँ भई, भारत देश में लोकतंत्र जो है।
मजाक में कही जाने वाली एक कहावत है : इस देश में क्रिकेट और राजनीति पर इस विषय में शून्य ज्ञान रखने वाले भी १ घंटे तक बिना रुके बोल सकते हैं। अब इसमें संगीत को भी जोड़ देना चाहिये। अब ज़रा वोट माँगने के तरीके पर गौर फरमायें। मैं राजस्थान के सभी लोगों से अपील करूँगा कि मुझे वोट करें। यहाँ राजस्थान की जगह आप पंजाब, हरियाणा, आँध्र, तमिलनाडु, उप्र, कश्मीर, असम, बंगाल कोई भी राज्य लगा सकते हैं। ये सभी जानते हैं कि इस तरह की वोटिंग से हमारे मन में उस प्रतियोगी के लिये अलग जज़्बात उभरते हैं और हम ये भूल जाते हैं कि हम प्रदेश के लिये नहीं, देश के लिये चुनना होता है। और यहाँ शुरू होता है देश का बिखराव। यहाँ राज्यों के हिसाब से ही नहीं वरन् धर्म और मजहब के आधार पर भी वोटिंग होती है। मैं किसी को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता पर २-३ वर्ष पूर्व एक ऐसे ही शो में काज़ी व रूपरेखा के चुने जाने पर बवाल हुआ था। उत्तर पूर्व से एक के बाद एक संचिता, देबोजीत, अनीक,प्रशांत का आगे आना, व तीन क्षेत्रों में पिछड़ने के बाद इशमीत का उत्तर क्षेत्र(जिसमें उनका अपना राज्य पंजाब आता है) में आगे आना, व और भी कईं ऐसे किस्से हुए हैं। मैं इनकी प्रतिभाओं पर संदेह नहीं कर रहा हूँ।हजारों लाखों लोगों में से चुने गये हैं तो कुछ तो दम होगा ही। जिनमें एक खराब परन्तु कईं बार ऐसा हुआ है जब उम्मीदवार केवल इसलिये आगे है क्योंकि उसके क्षेत्र के लोगों ने वोट करे थे। खराब प्रदर्शन भी उस उम्मीदवार को खेल में बनाये रखता है। जिस मकसद से "मेरी आवाज़ सुनो" व "सारेगम" प्रतियोगितायें होतीं थीं वो मकसद अब खत्म होता जा रहा है या यूँ कहें कि वो मकसद ही बदल गया है।
उम्मीदवार खुद फोन व सिम खरीद कर लोगों में बाँटते फिर रहे हैं। फोन कम्पनी करोड़ों कमा रही है। यही हाल चैनलों का है। लोग बावलों की तरह वोट करते हैं।
ये कहाँ का संगीत है? ये किस बात का मनोरंजन है? इसलिये तो इन कार्यक्रमों को शुरू नहीं किया गया था? पैसे की खनक ने पायल और तबले की आवाज़ों को दबा दिया है। रूपये और पैसे की दौड़ में कहीं हम भारत की एकता को तो नहीं बेच रहे हैं? ये बात हमें समझनी चाहिये। चैनल व सरकार दोनों से अनुरोध है कि अगर आप तक मेरी बात पहुँचे तो कृपया जनता के वोटों को बंद कराइये। मैं जानता हूँ चैनल व मोबाइल कम्पनी दोनों को घाटा होगा पर संगीत व भारत की अखंडता के लिये यदि नोटों व वोटों को भुला दें तो यही सभी के लिये हितकारी होगा।

3 comments:

रंजू भाटिया said...

बहुत सही लिखा है आपने तपन जी ..पर यह पुकार कब असर करेगी कौन जाने :)

Unknown said...

तपन भैया,
इन लोगो को देश से कुछ नही लेना, इनको बस अपनी जेब भरनी है
उस के लिए ये किसी भी हद तक गिर सकते है
सुमित भारद्वाज

Unknown said...

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