Saturday, August 9, 2008

क्यों जल रहा है जम्मू?

जम्मू जल रहा है। वहाँ बंद है, आगजनी है, कर्फ्यू तोड़े जा रहे हैं।




हालात बेकाबू हैं। लोग कहते हैं कि ४० दिनों से जम्मू में हालात खराब हैं। पर ये कहानी ४० दिनों की नहीं है। इसके लिये हमें ६० वर्षों के इतिहास को खंगालना होगा।
वो हर घटना की चिंगारी पर गौर करना होगा जो परिणाम स्वरूप ज्वाला बन कर उभरी है। वो हर जख्म का कारण ढूँढना होगा। आइये समझने की कोशिश करें जम्मू की इस जलन को।



जम्मू और कश्मीर शुरू से ही दो अलग मजहबों का एक राज्य रहा है। ये एक ऐसा राज्य है जहाँ मुस्लिम हिंदुओं से ज्यादा तादाद में हैं। अगर जम्मू की बात करें तो यहाँ ६७% हिंदू हैं और कश्मीर में ९५ फीसदी मुस्लिम। ये जगजाहिर है कि कश्मीर घाटी में हमेशा से ही पाकिस्तान समर्थक और भारत विरोधी नारे लगते रहे हैं व गतिविधियाँ होती रही हैं। यहाँ पाकिस्तान के झंडे भी लहराये जाते हैं। लेकिन कभी इन पर रोक नहीं लगी। बीते ६० सालों से किसी भी सरकार ने इसे समझने की कोशिश नहीं करी। हर किसी के लिये ये चुनाव का मुद्दा रहा। हर कोई अपनी रोटियाँ सेंकता रहा। पर जम्मू की दिक्कत फिलहाल ये नहीं, ये तो देश की सरकार को देखना है कि किस तरह से देशद्रोहियों से निपटा जाये। घाटी में जो देशद्रोह फैला हुआ है उसका मूल कारण क्या है...

ये गौरतलब है कि माता वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड की ओर से करोड़ों रूपया सरकार के खाते में जाता है। बोर्ड जब भी कहीं जमीन लेता है तो उसका किराया सरकार को जमा करवाता है। बोर्ड ने तीर्थ यात्रियों की सुविधाऒं के लिये अनेकानेक कार्य करे हैं। ये सब सुविधायें तभी हो पाईं जब बोर्ड का गठन हुआ। ये भी बात है कि जम्मू के लोग घाटी के लोगों से ज्यादा कर अदा करते हैं। केंद्र और राज्य सरकार वहीं से ज्यादा पैसा खाती हैं। इतना ही नहीं नौकरी के एक ही पद के लिये श्रीनगर के लोगों को ज्यादा वेतन दिया जाता है और सरकारी नौकरियाँ भी ज्यादा होती हैं। घाटी के किसान को ज्यादा सब्सिडी मिलती है और जम्मू के किसान को कम। यही भेदभाव प्राकृतिक आपदाओं में मुआवज़ा देते हुए भी किया जाता रहा है। आज के समय के युवा नेताओं पर नजर डाली जाये तो फारूख अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला व महबूबा मुफ्ती के अलावा आपको वहाँ और कोई याद नहीं आयेगा। क्या ये केवल इत्तफाक है कि ये दोनों श्रीनगर का प्रतिनिधित्व करते हैं? आपमें से बहुत कम लोग जम्मू के किसी प्रसिद्ध नेता का नाम जानते होंगे। इसका कारण क्या है? हम कश्मीर की समस्या को सुलझाते रहे हैं पर कभी जम्मू की समस्या पर हमारा ध्यान नहीं गया। क्या ये सालों पुराना राजनेताओं के द्वारा किया गया भेदभाव है या ये अंजाने में हो रहा है?

अब रूख़ करते हैं उस घटना का जिसने वर्षों के इस शीत-युद्ध को सतह पर लाने का काम किया। २६ मई २००८ को केंद्र व राज्य सरकारें ये निर्णय लेती हैं कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को १०० एकड़ की जमीन दी जाये। इस जमीन पर हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिये अस्थाई तौर पर रहने की व अन्य सुविधायें दिये जाने की बात होने लगी। मुस्लिम बहुल व कश्मीर घाटी के इलाकों में इस निर्णय के बाद हिंसा फ़ैल गई व उन्होंने खुले तौर पर इसका विरोध किया। इस विरोध में वहाँ के युवा नेताओं ने भी पूरा साथ दिया। ये सरकार को अच्छी तरह से मालूम था कि चुनाव में यही इलाका इनकी मदद करेगा। तब घाटी के मुस्लिम नेताओं के दबाव में आकर सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया। ये वो कदम था जिसने आज की परिस्थिति को जन्म दिया।




जम्मू के लोग जो ज्यादातर हिंदू हैं ये बात पचा नहीं पाये। जो जमीन उनकी सुविधा के लिये थी उसे मना कैसे कर दिया। फिर चाहें हिन्दू हों अथवा वहाँ का प्रतिनिधित्व करने वाले मुसलमान दोनों ही की तरफ़ से सरकार के जमीन वापसी के फ़ैसले का विरोध होना शुरू हुआ। ये अब से ४० दिन पहले की बात है। लेकिन मीडिया में इसका जिक्र अभी ८-१० दिन पहले ही आना शुरू हुआ। क्योंकि इससे पहले केंद्र सरकार खुद को बचाने में लगी हुई थी कि इसकी तरफ़ किसी का ध्यान ही नहीं गया। देश २०२० तक ६% बिजली देने वाले परमाणु करार और सरकार में ही उलझा रह गया और वहाँ स्थिति बद से बदतर होती चली गई। जिक्र तब आना शुरू हुआ जब हुर्रियत कांफ़्रेंस के नेता यासिन मलिक भूख हड्ताल पर जाते हैं....वो बंदा जो पाकिस्तान समर्थक है उसका इंटर्व्यू चैनलों पर दिखाया जाता है। जो नहीं जानते उनके लिये बताना चाहूँगा कि हुर्रियत का मतलब है "आज़ादी"। और ये पार्टी पाकिस्तान की २६ पार्टियों के समर्थन से घाटी में काम करती है। जिक्र तब शुरू हुआ जब श्रीनगर को खाना-पीना, पेट्रोल, डीज़ल मिलना जम्मू की ओर से बंद हो गया। हाइवे बंद कर दिये गये और ट्रकों को वहीं पर रोक दिया गया। उससे पहले स्थिति का जायज़ा नहीं लिया गया। प्रधानमंत्री जी महज औपचारिकता के नाते इतने समय के बाद सभी पार्टियों की मीटिंग बुलाते हैं पर अभी तक कोई फैसला इस मुद्दे पर नहीं लिया गया है।

क्या कारण है कि घाटी इस जमीन का विरोध कर रही है? क्या वे नहीं चाहते कि वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड की तरह ही अमरनाथ श्राइन बोर्ड तरक्की के लिये काम करे? क्या कारण रहा कि जो फैसला राज्य की कांग्रेस सरकार व केंद्र की कांग्रेस सरकार ने मिल कर किया वे उसी पर कायम न रह पाये? क्या कारण है कि जो माँगे घाटी के लोगों की सरलता से मानी जाती हैं वो जम्मू के क्षेत्र की नहीं सुनी जाती? देखना ये है कि केंद्र जो "नोटों" के सहारे टिका हुआ है अपने वोटबैंक यानि कश्मीर घाटी का साथ देता है या नहीं? क्या इस बार जम्मू को उसका हक़ मिलेगा या फिर वोटों की भेंट चढ़ जायेगा? जम्मू की पुरानी कुंठा इस कदर फूटेगी शायद ये सरकारों को अंदाज़ा नहीं था... पर शायद ये जरूरी था..(??)

--९ अगस्त
सर्वदलीय दल जो रवाना हुआ है जमीन विवाद सुलझाने के लिये उसमें सैफुद्दीन सोज़, फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती शामिल हैं। तीनों श्रीनगर से हैं... जम्मू से कौन शामिल हुआ है? मेरा सवाल है केंद्र से कि जम्मू का एक भी प्रतिनिधि बैठक में ले जाने की जहमत क्यों नहीं उठाई गई? कौन बतायेगा जम्मू का नजरिया?

12 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

Badhai
jwalant muddon par vichaar bahut jaruri hai.
mere blog par meri gazal paden jiska MATLA hai ki

Tustikaran ka naatak sareaam chal raha hai.
Janta sisak rahi hai or jammu jal raha hai..
poori GAZAL mere blog se pad kar apni pratikriya avashya de.

दीपान्शु गोयल said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने। आपने सच को कहने की हिम्मत दिखाई है उसके लिए साधुवाद।

Sajeev said...

बिल्कुल सटीक तपन भाई....

achhabra said...

फोटो रिपोर्टर navitsharma@gmail.com

Sandeep said...

hmmm....bahut achchha lekh hai....ye baatein pata nahi thi.

Unknown said...

Great work

Unknown said...

मुझे जम्मू और कश्मीर के बारे मे इतनी जानकारी नही थी
बहुत अच्छा लिखा तपन भैया..........

Manvinder said...

जम्मू की तस्वीर बहुत अच्छी खिंच दी है अपने

achhabra said...

http://in.youtube.com/watch?v=ReFA4yPB0EI

http://in.youtube.com/watch?v=l-nCRNNQ6ps&feature=related

achhabra said...

Those who want to know who is this man doing the fasting in Kashmir http://in.youtube.com/results?search_query=Yasin+Malik+on+BBC+HARDTALK+Show&search_type=&aq=-1&oq=

navit said...

FYI--> H'nable Home Minister on his visit to Kashmir announced some relief packgae to the fruit growing community in Kashmir on their complains that their fruit is not reachin the Market courtesy " So called economic blockade". Who's gonna tell the minister that compensation for the fruit which he's announced gets ripe in spe end oct and is ready for market only at that time. So did the fruit growing community fooled the Minister or shall we call..Appeasement at its best...

navit said...
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