देश में हड़तालें हैं,
चक्का जाम हैं,
सड़कें बंद हैं,
रेल बंद है,
बसें फूँकी जाती हैं..
टायर जलायें जाते हैं
पुतले फूँके जाते हैं
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है..
स्कूल में गोली चलती है
बच्चे आत्महत्या करते हैं
एम.एम.एस बनते हैं,
ये देश के भविष्य हैं(?)
स्कूल कालेज की
दुकान लगती है,
सरेआम विद्या बिकती है
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है...
कानून तोड़े जाते हैं
दुकानें जलाई जाती हैं
दंगे-फसाद आम हैं
आतंकवाद है,
हर राज्य में वाद-विवाद है
६१ सालों का आरक्षण खास है
सब निकालते भडास हैं
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है...
इज्जत पर परमाणु करार है
नोटों पर बनती सरकार है
आतंकवादियों पर रूख नरम है
देश तोड़ना भाषा का करम है
राज ठाकरे का ’राज’ है
ये नेताओं के हाल हैं
ये कैसा तंत्र है (?)
’नोट’ या ’वोट’ तंत्र है
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है...
३० प्रतिशत अशिक्षित हैं
खाना खिलाने वाला किसान
मजबूर है
बिना छत के मजदूर हैं
पीने को पानी नहीं
नदियों के पानी पर लडाई है
एकता की होती बड़ाई है
६१ सालों में बुराइयाँ
जस की तस हैं
ढीठ देश आज भी
बेबस है,
कमजोर है
जाने देश किस ओर है
सबसे बड़ा लोकतंत्र है!!!
ये देश स्वतंत्र है???
4 comments:
बहुत सही लिखा है भइया आपने , शायद हमारे देश के वर्तमान हालत को व्यक्त इसी तरह से किया जा सकता है. सच तो ये है की अब सचमुच अपने देश को स्वतंत्र और लोकतंत्र कहना ग़लत लगने लगा है...आज़ादी के इतने वर्षो में हमने जो कुछ पाया उससे कहीं ज्यादा हमने खो दिया है और ऐसे ही हालत रहे तो शायद आनेवाले वक्त में सिर्फ़ खोते ही रहेंगे और कुछ हासिल ना कर पाएँगे...
बहुत खूब...
बहुत सही!! बढ़िया.
well said!!:)
काफी नकारात्मक भावनाओं को व्यक्त करती है आपकी कविता. ठीक है, आखिर है तो कविता. कविता का सम्बन्ध सीधे भावना स ही तो है. फिर भी, वैचारिक तल पर अगर देखें तो इसमें निराशावादिता झलकता है. एक ऐसे समाज में जहाँ पिछड़ापन और गरीबी का राज है, असमानताओं का इतना सारा जंजाल है, वहाँ लोकतंत्र का वो स्वरूप महज साठ साल में नहीं पनप सकता जो हमें इंगलैंड या अन्या पस्चिमी देशों में देखने को मिलता है. लोकतंत्र की सफलता के लिये हमें गरीबी, और अशिक्षा पर विजयी होना होगा. बात रही हिंसा और अतिवादिता का इससे पार पाने के लिये भी हमें तेज सामजिक आर्थिक विकास का सहारा लेना होगा.
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