Saturday, August 30, 2008

कोसी से कंधमाल तक...कहानी राजनीति की...

जम्मू की आगअभी बुझी भी नहीं थी कि कोसी की बाढ़ और कंधमाल के दंगों ने देश को झकझोर के रख दिया है। जम्मू में हम केंद्र और राज्य सरकार का आतंकवादियों के प्रति नर्म रूख और जम्मू के लिये लापरवाही को देख ही चुके हैं। अब पहले बात करते हैं कोसी की। ये नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है और बिहार में भीम नगर के रास्ते से भारत में दाखिल होती है। इसके भौगोलिक स्वरूप को देखें तो पता चलेगा कि पिछले २५० वर्षों में १२० किमी का विस्तार कर चुकी है। हिमालय की ऊँची पहाड़ियों से तरह तरह से कंकड़ पत्थर अपने साथ लाती हुई ये नदी निरंतर अपने क्षेत्र फैलाती जा रही है। उत्तर प्रदेष और बिहार के मैदानी इलाकों को तरती ये नदी पूरा क्षेत्र उपजाऊ बनाती है। ये प्राकृतिक तौर पर ऐसा हो रहा है। इसके मूल व्यवहार से छेड़खानी अपनी मौत को बुलावा देने बराबर है। पर इंसान ने कभी प्राकृति को नहीं समझा है। नेपाल और भारत दोनों ही देशों में इस नदी पर बाँध बनाये जा रहे हैं। परन्तु पर्यावरणविदों की मानें तो ऐसा करना नुकसानदेह हो सकता है। चूँकि इस नदी का बहाव इतना तेज़ है और इसके साथा आते पत्थर बाँध को भी तोड़ सकते हैं इसलिये बाँध की अवधि पर संदेह होना लाज़मी हो जाता है। कुछ साल..बस। कोसी को बिहार का दु:ख क्यों कहा जाता है ये अब किसी से नहीं छुपा है। इस समय जो हालात बिहार में है वे निस्संदेह दुखदायी हैं। हमारी सरकार इस बाबत कोई कदम क्यों नहीं उठाती? क्यों हम प्रकृति से खिलवाड़ करते रहते हैं? नेपाल में बाढ़ आयेगी तो वो कोसी का पानी अपने देश में क्यों रखेगा? इसलिये नेपाल को दोष देने की बजाय हमें अपनी गलतियों को देखना जरूरी है।

हमने बहाँ बाँध बनवाये, और लोगों को लगने लगा कि कोसी अपना पुराना भयावह रूप अब कभी नहीं दिखायेगी। किन्तु ऐसा नहीं है। ये बात उन्हें पता नहीं थी और सरकार ने भी उन्हें आगाह नहीं किया, जिसके फलस्वरूप लोग वहाँ पक्के मकान बनाकर रहने लगे। और बाढ़ आई तो बेघर हो गये। रही सही कसर केंद्र की कांग्रेस सरकार ने तब पूरी कर दी थी जब उसने सरकार बनाते ही वाजपेयी सरकार के उस प्रोजेक्ट पर विराम लगा दिया था जो नदियों को जोड़ने का काम करता। कांग्रेस राजनीति खेल गई और इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कोसी में बाढ़ आती रही है, और आती रहेगी ये बात समझ लेनी चाहिये और इसके लिये कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत है। चाहें नदियों को जोड़ें या लोगों को पक्के घर बनाने से रोकें।


अब चलते हैं उड़ीसा के कंधमाल। यहाँ पानी की नदी नहीं, खून की नदी बह रही है। जैसा कि जम्मू में हो रहा है। राजनीति यहाँ भी खूब खेल खेल रही है। १९९९, ग्राहम स्टेंस की हत्या। राज्य में थी गिरिधर गमांग की कांग्रेसी सरकार। जो मामला नहीं संभाल सकी। इल्जाम लगाया गया केंद्र में बैठी वाजपेयी सरकार पर। गमांग साहब ने तो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए संसद में जाकर वाजपेयी सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई। ये सभी जानते हैं कि ईसाई मिश्नरियों का एक ही मकसद है। किसी भी तरह से धर्म परिवर्तन करवा कर ईसाई धर्म अपनाने पर मजबूर करना। ये सदियों से ऐसा होता आया है, जब अंग्रेज़ आये थे, तब से। लक्ष्मणानंद नाम का एक विहिप कार्यकर्त्ता जो लोगों को ऐसा करने से रोकता था। कहा जाता है कि नक्सलियों ने मार डाला। आतंकवाद कोई धर्म नहीं देखता। कहीं इस्लामी आतंकवाद है तो कहीं नक्सल, कहीं बोडो, कहीं लिट्टे। हर किसी में अलग अलग धर्म। कंधमाल में नक्सल आतंकवादियों में ९९ फीसदी ईसाई। अब आगे कुछ कहने को नहीं रह जाता। लक्ष्मणानंद की हत्या हुई। हिन्दू कट्टरपंथियों को ये रास नहीं आया। हिंसा भड़क उठी। राज्य सरकार ने केंद्र से फोर्स माँगी, केंद्र ने मना कर दिया। जब स्थिति बदतर हुई तब केंद्र सरकार जागी। तब पोप भी जागे। ईसाई कांवेंट स्कूल बंद करवाये गये। कांग्रेस सरकार कहती है कि राज्य सरकार से स्थिति नहीं सम्भाली जा रही है। उड़ीसा में धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून है। यही कानून मध्य प्रदेश में भी है। राजस्थान में बन जाता यदि कांग्रेस सामर्थित उस समय की गवर्नर प्रतिभा पाटिल ने दस्तखत कर दिये होते। कांग्रेस सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी है, इसलिये राजनीति के खेल में माहिर है।


कुछ नहीं बदलेगा...न कंधमाल..न जम्मू..न श्रीनगर...इन विवादों का कोई अंत नहीं है...
धर्म समाप्त हो जाये, ऐसा मुमकिन नहीं...राजनीति चाणक्य काल के भी पहले से है (महाभारत से पहले से), वो भी समाप्त नहीं होगी..धर्म से राजनीति...वो भी नहीं...
खत्म होगा तो ये देश...खत्म होंगे तो हम..



नोट: कंधमाल की उपरोक्त जानकारी निम्न लिंक से प्राप्त हुई है।
http://indiagatenews.com/india-news/bjp-could-not-digest-naxalite-theory-of-murder.php/

5 comments:

MEDIA GURU said...

kafi jankari poorn lekh sath hi rajniti ko bhi achhi tarah se visleshit kiya hai.

महेन्द्र मिश्र said...

बड़ी दुखद स्थिति है . लाखो लो बेघरबार हो गए है .

Abhishek said...

kyon na hum log milkar kuch kapdo/medicines/aur anaaj ka prabandh karein?
Bihar kaise pahoonchega iski jankaari mein nikaalta hoon?

L.Goswami said...

bilkul sahi kaha aapne rajniti ke karan hi yah durdasa huyi hai.


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एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.

Anonymous said...

ये साम्राज्यवादी मुलुको ने हतियार बनाए, हतियार के बल पर उपनिवेष और उपनिवेषो से लुटा ढेर सारा धन। अब ये चाहते है की इनके डलर/पाउंड/युरो के बल पर सारी दुनिया को ईसाई बना दें। सारे विश्व मे एक ही धार्मिक विचार वाले लोग हो और उनका धार्मिक मुखिया वेटीकन सिटी मे बैठे जो इनका प्यादा हो और वह जो बोले उस पर सारी दुनिया वाले श्रद्धा रखें। यह सर्वसत्तावादी विचार एक बहुत बडी हिंसक प्रवृति है। चर्चो द्वारा लोभ लालच के बल पर कराया गया धर्मातरण स्वयम ही हिंसा हीं है। उपर से चर्च द्वारा एक धार्मिक व्यक्ति लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या। चर्चो की इस हिसा ने हिसा को जन्म दिया। बहुत दुख होता है यह सब देख कर।