Friday, October 15, 2010

भूल, भूख, भूत और भारत: Commonwealth Games and Hunger Index

क्या आपको मालूम है भगत सिंह की जन्मतिथि क्या है? क्या आपको मालूम है मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान पर कितनी बार हमला किया था? क्या आपको पता है कि हमारे पहले शिक्षामंत्री कौन थे? हो सकता है कि आपको ये सब बातें पता हों या पढ़ी हुईं हों परन्तु देश की आधी आबादी इन बातों से बेखबर है। ये लोग शहर के कथित आज की पीढ़ी के नौजवान हो सकते हैं अथवा किसी सुदूर गाँव के लोग। चलिये तो बहुत पुरानी बातें हैं, क्या आपको याद है कि राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल ने किस नेता को हराया था? क्या आपको पता है कि प्रधानमंत्री किस राज्य से राज्यसभा सदस्य हैं? अभी कल ही खबर आई कि जॉन अब्राहम को १५ दिन की सजा हो गई है। कारण २००६ में गलत ड्राईविंग बताया गया। आपमें से कितनों को इस बारे में याद था? और हम में से कितनों को दो साल बाद ये बात याद रहेगी?
बात को आगे न घुमाते हुए मुद्दे पर आते हैं। बात सीधी से यह है कि हम भारतीयों को भूलने की बहुत आदत है। हम जल्द ही बात व घटना भूल जाते हैं। शायद इसलिये कि और भी जरूरी काम हमें करने होते हैं। ऊपर दी हुई बातें हमारी दिनचर्या पर असर नहीं डालती हैं। मुदा उठाना इसलिये आवश्यक लगा कि आप सभी जानते हैं कि कॉमेनवेल्थ खेलों में करोड़ों का घपला हुआ है। भारतीय खिलाड़ियों के चमत्कारी प्रदर्शन ने कलमाड़ी और कांग्रेस सरकार की घाँधलियों को छुपा सा दिया है। हर और खेलों के शुभारम्भ और महासमापन का राग चल रहा है।

जिस समय ये खेल चल रहे थे उसी समय एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था (International Food Policy Research Institute) ने हमें बताया कि जिस देश के आप बाशिंदे हैं उस देश में चीन और पाकिस्तान से ज्यादा लोग भूखे हैं। इस देश में भुखमरी हमारे "दुश्मन" देशों से कहीं ज्यादा है। अब आप ये नहीं कहियेगा कि ये देश हमारे दुश्मन नहीं हैं। कहीं आप ६२, ६५, ७१, ९९ की लड़ाइयाँ तो नहीं भूल गये? १९६२ का चीन धोखा और उसके बाद पाकिस्तान के धोखे तो नहीं भूल गये? क्योंकि हमारे नेता और कुछ लोग इन बातों को भूल जाते हैं और अमन की आशा का पैगाम उठाते हैं। सुनने में बहुत अच्छा लगाता है वैसे। जवाहरलाल नेहरू को चीन ने धोखा दिया और अटल बिहारी वाजपेयी को पाकिस्तान ने। वही हम अपने भूतकाल की भूलों से सबक नहीं लेते जिसकी वजह से हमारा वर्तमान बना है।

हम बात कर रहे हैं भुखमरी की। इस संस्था के अनुसार ८४ देशों में भारत का नम्बर ६७ है जबकि पाकिस्तान ५२ और चीन नौवें नम्बर हैं। उम्मीद है कि खेलों के चकाचौंध ने आपको गर्वांवित किया हो तो ये आँकड़ें आपको शर्मिंदा कर रहे होंगे और यदि फिर भी आपको लगता हो कि इंडिया शाइन कर रहा है और शेयर मार्केट आपको आकर्षित कर रही हो तो दिल थाम कर बैठिये क्योंकि हम नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे हैं और बांग्लादेश से केवल एक पायदान का अंतर। आगे के आँकड़े जानना चाहेंगे? विश्व के कम वजनी बच्चों में से ४२ प्रतिशत केवल भारत में हैं।

क्योंकि हम लोग शहरी हैं और इस लेख को पढ़ने वाले भी अधिकतर शहरी होंगे और शायद उस भूख से अनजान जो इस भारत को अंदर ही अंदर खाये जा रही है। ७० हजार करोड़। इतने रूपये खर्च हुए हैं हमें "गर्व" महसूस कराने में। धिक्कार है ऐसे झूठे गर्व पर। भला हो खिलाड़ियों का जिन्होंने देश का सम्मान बढ़ाया। खेलों ने नहीं खिलाड़ियों ने सम्मान बढ़ाया है। भूखों का मुद्दा किसी चैनल ने नहीं उठाया है क्योंकि खेल आड़े आ गये हैं। क्या सुरेश कबाड़ी और शीला आँटी इन आँकड़ों को जानती हैं? क्या हमारे युवराज राहुल बाबा इन को जानते हैं? या फिर दलितों के घर रहने के अलावा भी देश के लिये उन्होंने कुछ किया है? उन्होंने भी दलितों की झुग्गी में चूल्हे पर अपनी राजनैतिक रोटी सेंकनी होती है। कहते हैं कि चूल्हे की रोटी बड़ी स्वादिष्ट होती है। पिछले सात सालों में सत्तर हजार करोड़ खर्च किये यदि कांग्रेस की केंद्र सरकार भूखों पर भी ध्यान देते तो शायद आज हम कम से कम पाकिस्तान से ऊपर होते।

चलते चलते गाँधी जी का वो जंतर बताते जायें जो NCERT की हर किताब के शुरू में हुआ करता था। शायद हम उस जंतर को भी भूल गये। आजकल की किताबों में ये जंतर पाया जाता है या नहीं इसका पता नहीं। हम कुछ भी काम करें तो ये सोचे कि क्या इस काम से उस बच्चे का भला होगा जो आपने सबसे गरीब देखा होगा।

न भूलें याद रहीं न भूत याद रहा और न ही भूख। और हम सोचते रहे कि इंडिया आगे बढ़ रहा है पर भारत तो भूखा सो रहा है।

वन्देमातरम, जय हिन्द।

9 comments:

Pallavi said...

strong article.tum sach mein kalam ke raja ho tapan

Vinay Nijhawan said...

good articale...but India main jitney bhookhey hai utna to total pakistan hai :)..we can't compare india with pakistan..china is Ok

neelam said...

क्या बात कर रहे हो ...............भारत में ये दुर्दशा ,पर सिक्के का एक पहलू और भी है, तुम्हारे जैसे नौजवानों ने ओबामा जैसों की नींद उड़ा रखी है गरीबी और भुखमरी कभी नहीं जायेगी तपन, फिर वोट की राजनीति कैसे हो पाएगी ,गरीब नहीं होंगे तो मुफ्त में चावल और कम्बल कैसे बाटेंगे ???????????लालू जी का क्या होगा ,बिहार भी तरक्की की राह पर है अब तो .उम्मीद पर ही भारत कायम है .अच्छा आलेख है

Rahul said...
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Rahul said...
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Rahul said...

बहुत बढ़िया सर जी!! लेकिन सिर्फ एक पहलु के साथ देखना गलत होगा...पहली बात की हमारी जनसँख्या ही इतनी है की १% भी कुछ हो तो एक छोटे मोटे देश के बराबर हो जाता है | सिर्फ केंद्र सरकार को दोषी मानना गलत होगा...राज्य सरकार भी उतनी ही दोषी है...अगर गुजरात,हरियाणा , पंजाब,दिल्ली आगे बढे तो बाकी क्यूँ नहीं?? हमारे राजनीती ( आज़ादी के बाद ) की दूसरी पीढ़ी (८० और ९० के दशक वाली पीढ़ी) ने इस देश को बढ़ने से रोका ..वोह कांग्रेस रही हो या कोई और...ये वोह नेता थे जिनको एक आजाद देश विरासत में मिला..और देश के लिए करने के बजाय "देश से उम्मीद" लगाने लगे!! और ये सारे अन्तराष्ट्रीय संश्थान बिना मकसद कुछ नहीं करते ....हक्कीकत से ज्यदा ये एक शातिर चाल है ..पहले प्रचार करो फिर दुनिया से पैसे मांगो या बिना मांगे उधर देने पहुच जाओ की हम "गरीबी, बीमारी हटाना , शिक्षा आदि करेंगे... फिर उस काम को करने के लिए "विदेशी कंपनी" दवा-दारू ,किताब,निर्माण इत्यादि देगी!!. इसलिए ये क्या कहते हैं उससे हममे कोई फर्क नहीं होना चाहिए| पाकिस्तान हो या चीन कहीं भी कोई इंसान भूका क्यूँ रहे ..फिर ये तुलना क्यूँ??? हमे खुद को सही करने,बेहतर करने पर सोचना चाहिए!! हाँ ये कोम्मोंवेअल्थ गेम्स पासी की बर्बादी ही थी और कुछ नहीं इससे हम कितने घरो के बंद चूल्हों को आग दे सकते थे!!
आज बहुत दिनों बाद पढ़ा आपका कोई लेख..बहुत बेहतर लिखने लगे हैं आप :-)

Rahul said...
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Rahul said...
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Rahul said...
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