आज की फ़िल्म है- प्यासा। चूँकि ये मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्मों में से एक है इसलिये इस फ़िल्म के गीतों की तरफ़ मेरा झुकाव लाज़मी है।
गीत १. जिन्हें नाज़ है हिन्द पे वो कहाँ हैं?
इस अंक का पहला गीत वो है जिस गीत में इतनी सच्चाई थी जिसे सुनने के बाद सरकार ने रोक लगा दी थी...
गीत २. ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है...
इस दुनिया में इतना दर्द छुपा हुआ है जिसे बखान करना नामुमकिन है, किन्तु इस गीत के जरिये वो संवेदना दिलों तक पहुँचती है जब एक कलाकार अपनी कला को किसी दूसरे के नाम पर "बिकते" हुए देखता है।
गीत ३. जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला..
एक बार फिर.. दर्द... इस बार एक प्रेमी के नज़र से दर्द के एक अलग रूप देखने को मिलता है।
गीत ४. जाने क्या तूने कही.. जाने क्या मैंने सुनी..
वहीदा रहमान जब गुरुदत्त को अपनी ओर बुलाती हैं तब...
गीत ५. सर जो तेरा चकराये...
आज के मस्ती वाले गीत सुनें और इसको सुनिये। इस गाने को सुनने के बाद सिर का दर्द सही में गायब हो जायेगा। जॉनी वॉकर की मस्ती व एक्टिंग को सलाम...
और अंत में,
गीत ६. तंग आ चुके हैं गम-ए-ज़िन्दगी से हम..
इस गीत की खासियत यह है कि इस गीत में संगीत नहीं है!!! रफ़ी के प्रशंसक कहते हैं कि जब मोहम्मद रफ़ी गाते हैं तो संगीत की ज़रूरत ही क्या है।
आशा करता हूँ कि इस श्रृंख्ला का यह पहला अंक आपको पसंद आ या होगा। हालाँकि अभी मुझे नहीं पता कि कितने और अंक मैं धूप-छाँव पर आपके लिये ला सकूँगा।
फ़िल्मों के बीच राजनैतिक/सामाजिक लेख जारी रहेंगे। कोशिश यही रहेगी कि आपका मनोरंजन कर सकूँ और नई जानकारी आप तक पहुँचाऊँ।
धन्यवाद।
।वन्दे मातरम।
2 comments:
बहुत बढिया आरम्भ है शृंखला का!
हर हिन्दुस्तानी की पहली पसंद है गुरुदत्त की "प्यासा" जो उन्हें इतिहास में अमर बनाती है .......बेहद अच्छा प्रयास, जारी रखना इसे .
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