Tuesday, September 6, 2011

कांग्रेस सरकार, टीम अन्ना, देशद्रोह व कुछ "सुविचार" Congress Government, Anti-Team Anna Campaign

टीम अन्ना को इस आंदोलन से कुछ हासिल नहीं हुआ.. न सरकारी लोकपाल बिल वापिस हुआ.. न वो तारीख बताई गई जब तक जनलोकपाल बिल पास होगा.. ऊपर से दस तरह के "दिखावटी" बिल और आ गये सरकार के पास...अब अगर  कुछ होगा तो संसद में बहस... इस आंदोलन से हार केवल टीम अन्ना की हुई है...और अब सरकार के वार पर वार.. देखें आगे क्या होता है.. अन्ना ने कहा आधी लड़ाई जीते हैं... मुश्किल लगता है...

हाल ही में किरण बेदी, प्रशांत भूषण व ओमपुरी पर संसद की अवहेलना का आरोप लगाया गया। सांसद संसद की गरिमा की दलील देने लगे। किरण बेदी कहती हैं "सांसद विश्वासघाती हैं" तो क्या गलत कहा है? प्रशांत भूषण जब कहते हैं कि "सांसद पैसा लेकर  सवाल पूछते हैं" तो क्या गलत कहते हैं? क्या सांसदों पर पहले कभी घूस का आरोप नहीं लगा है? बकायदा सुबूत हैं उसके। और जब आवेश में ओमपुरी के मुँह से सांसदों को अनपढ़ और गँवार कहा गया तो वो इस देश की जनता की आवाज़ थी। आज हर सोशल नेटवर्किंग साईट पर नेताओं के खिलाफ़ नारे पढ़े जा सकते हैं। वैसे सांसद जब संसद में बहस करते हैं तब अनपढ़-गँवार नहीं बल्कि पढ़े लिखे गँवार जरूर लगते हैं।

(ये मैंने क्या लिख दिया......!!)

अब पढ़ते हैं अन्य "सुविचार"...

  • हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी कहते हैं शहीद ओसामा बिन लादेन के शोक में प्रार्थना सभा की जाये। आगे बयान आता है कि कश्मीर की आज़ादी ही एकमात्र रास्ता है।
  • मीरवाईज़ उमर अफ़्ज़ल गुरू की फ़ाँसी पर कहते हैं कि यदि उमर व फ़ारूख अब्दुल्ला को अफ़्ज़ल की फ़िक्र है तो उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिये।
  • अरूंधति रॉय भी काफ़ी बार माओवादियों के समर्थन में खुलकर बोल चुकी हैं। हुर्रियत नेताओं के साथ एक ही मंच पर आकर कश्मीर की आज़ादी का गुणगान कर चुकी हैं। उनके हिसाब से कश्मीर भारत का हिस्सा है ही नहीं क्योंकि वो कभी भारत में था ही नहीं।
  • उमर अब्दुला का हालिया बयान आया है कि यदि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा यदि अफ़्ज़ल गुरू की फ़ाँसी माफ़ करने की अर्जी दे तो क्या हिन्दुस्तान चुप बैठेगा। बातों बातों कईं बार अलगाववादियों का साथ दे चुके हैं और कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानने से आनाकानी करते रहते हैं।
  • जामा मस्जिद के शाही इमाम कहते हैं  कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन मुस्लिम-विरोधी है और मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं होना चाहिये। वे न जाने कितनी बार हिन्दुस्तान विरोधी नारे लगा चुके हैं।
  • दिग्विजय सिंह ओसामा को "जी" कहकर सम्बोधित करते हैं और उसकी मृत्यु पर शोक प्रकट करते हैं। वैसे ये महाशय बहुत ज्ञानी हैं.. अन्ना की टीम का पूरा "सच" बस यही जानते हैं.. बाबा रामदेव को महाठग घोषित कर दिया है इन्होंने.. पिछले दस वर्षों में इन्हें बाबा रामदेव नहीं दिखाई दिये पर बस इसी साल ये नींद से जागे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि यदि रामदेव सही राजनीति खेल पाते तो इनके आकाओं के पसीने छूट जाते।


और भी न जाने कितने ही ऐसे "सच्चे देशभक्त" महानुभाव हैं जो अपनी ज़ुबान से  "सुविचार" बोल चुके हैं। लेकिन उन पर कोई आरोप नहीं लगाये जाते..कांग्रेस सरकार कुछ नहीं कहती...क्यों? क्या माओवादियों को समर्थन देना..  अलगाववादियों का साथ देना देशद्रोह नहीं?

केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण को खरी खोटी सुनाने वाला सत्ता पक्ष उमर अब्दुल्ला के बयान पर क्यों चुप्पी साध लेता है? हुर्रियत नेताओं को नज़रबंद रखा जाने का  दिखावा क्यों किया जाता है? पाकिस्तान की विदेश मंत्री हमारे मन्त्रियों से मिलने से पहले हुर्रियत नेताओं से मिलती हैं वो भी नई दिल्ली में..  सरकार की नाक के ठीक नीचे..यही हुर्रियत नेता श्रीनगर में पाकिस्तानी झंडे लहराते हैं और जश्न मनाते हैं..


कमाल है.. फिर भी आँखें मींच लेती है सरकार...

काले धन के साढ़े तीन लाख करोड़ नजर नहीं आते लेकिन केजरीवाल के नौ लाख जरूर खलते हैं.. सरकार की गरीबी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है...

आप ही बतायें देशद्रोह बड़ा है या संसद की अवहेलना? संसद देश की है। सरकार को संसद की गरिमा नज़र आती है परन्तु देश की मिटती साख और देश के विरूद्ध आग उगलते शब्द नज़र नहीं आते।

वैसे उमर अब्दुल्ला और अरूँधति रॉय पर सरकार चुप रहेगी। नई दिल्ली व श्रीनगर में हुर्रियत नेताओं के देश विरोधी बयान पर सरकार आँखें मूँद लेगी। बुखारी और मीरवाईज़ उमर और अफ़्ज़ल गुरू पर हो रही राजनीति भी उन्हें दिखाई नहीं देगी। कारण आप और मैं दोनों जानते हैं...

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वे कत्ल भी करें तो चर्चा नहीं होता...


एक अंतिम प्रश्न:  एक बार मान लेते हैं कि संसद जनता से बड़ी है.. सांसद हमारे कर्ताधर्ता हैं.. मंत्री व प्रधानमंत्री राजा हैं तो जिस अफ़्ज़ल ने संसद पर.. हमारे "महान", "सच्चे", "देशप्रेमी" सांसद, कर्त्तव्यनिष्ठ मंत्रियों पर हमला करवाया उसकी फ़ाँसी पर क्या आपत्ति है?


पहले भी कहा है आज फिर दोहराऊँगा, कसाब तो अपने देश पाकिस्तान के लिये हिन्दुस्तान आया.. उसको मारने से पहले अपने देश के गद्दार अफ़्ज़ल को फ़ाँसी दो।



नोट: आज का यह लेख नहीं.. भड़ास है.. जो कईं हिन्दुस्तानियों के दिलों में है... आज लिखते हुए दिमाग नहीं लगा पाया..



वन्देमातरम।
जय हिन्द।

2 comments:

neelam said...

इस देश का दुर्भाग्य है ये कि पढेलिखे और समझदार लोग राजनीति से कोसों दूर हैं .और जो राजनीती में हैं वो या तो अपराधी है या फिर गंवार हैं ......गंवार वे सभी व्यक्ति है जो देश की चिंता न करके अपनी भैंस और अपने चारे की परवाह करते रहते हैं .....धूर्त हैं.
अन्ना के अनशन का ये फायदा तो हुआ है कि हर व्यक्ति जागा है ...और दूरगामी परिणाम भी जरूर आयेंगे .
तपन बहुत बढ़िया लेख है इसे किसी शीर्ष अखबार में जगह मिलनी ही चाहिए .

neelam said...

सभी नागरिकों के दिल की भड़ास है ये..........